...

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मेरी कहानी का नाम
मेरे घर के बड़े बुजुर्ग हमे बहुत समझाते थे,
महोब्बत ना समझो का खेल नही है,
ओर हम यही खेल खेल रहे हैं।
महोब्बत में हम जिस पर जान लुटाते है,
उसने महोब्बत में हक़ से हमारी जान ही लेली,
जिस्म का हक सांसो पर था,
तो जिस्म ने सांसे कैद करली,
मेरे हक में फकत कुछ शेर बचे,
तो जम शायर बन गए।
मुझे रोना नही आता , मै रो रहा है,
मै रोना नहीं...