ऐ ज़माना!
मैं गिर जाती तेरी ठोकर से किसी खाई मेें लेकिन,
ऐ ज़माना!मुझे खुद से मोहब्बत थोड़ी ज़्यादा है।
मैं बढ़ जाती अंधेरे के संग,आगे की तरफ लेकिन,
सूरज से आँखें मिलाने की चाहत ,मुझमें थोड़ी ज़्यादा है।
आसमां...
ऐ ज़माना!मुझे खुद से मोहब्बत थोड़ी ज़्यादा है।
मैं बढ़ जाती अंधेरे के संग,आगे की तरफ लेकिन,
सूरज से आँखें मिलाने की चाहत ,मुझमें थोड़ी ज़्यादा है।
आसमां...