शीशे के सामने भविष्य देखता हूं...........✍🏻
शीशे के सामने भविष्य की तस्वीर देखता हूं
मैं हर वक़्त खुद की इक तक़दीर देखता हूं
इस ज़माने के सामने अपनी कीमत क्या है
सवालों के साथ में हाथों की लकीर देखता हूं
महसूस कर रहा हूं उस अनजान सफ़र को मैं
इसकी उसकी बातों में छुपी तहक़ीर देखता हूं
ना जाने क्या कह दिया शीशे से निग़ाह मिलाकर
फिर भी शीशे के सामने खुद को गम्भीर देखता हूं
चेहरे पे झलक रही बैचेनी को कैसे भाप लेता है
मैं...
मैं हर वक़्त खुद की इक तक़दीर देखता हूं
इस ज़माने के सामने अपनी कीमत क्या है
सवालों के साथ में हाथों की लकीर देखता हूं
महसूस कर रहा हूं उस अनजान सफ़र को मैं
इसकी उसकी बातों में छुपी तहक़ीर देखता हूं
ना जाने क्या कह दिया शीशे से निग़ाह मिलाकर
फिर भी शीशे के सामने खुद को गम्भीर देखता हूं
चेहरे पे झलक रही बैचेनी को कैसे भाप लेता है
मैं...