...

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इश्क में चोट
हम तो पहले ही चोट खाए बैठे थे
खुद को ही खुद का खुदा बनाए बैठे थे
बड़ी मुश्किल से किसी पर यकीन किया था
जिस पर अपना सब कुछ लुटाए बैठे थे
सोचा नहीं था कुछ इस कदर तुम भी हमें रुलाओगे
जितनी दीं थी सारे जहां की खुशियां
हम तो इनको सच बनाए बैठे थे
इतना जुल्म क्यूं किया ऐ ज़ालिम
हम तो तुझे अपना खुदा बनाए बैठे थे
अब दे दिए इतने आंसू तूने हमें
हम इन आंसुओं को आंखों में कहीं छुपाए बैठे थे
उम्मीद जगाई थी तूने इश्क की
हम तो सारे एहसास सीने में दबाए बैठे थे
मुझे शिकवा नहीं तुझसे लेकिन एक सवाल है
क्यूं दिखाए इसे सपने जिन्हें हम अपनी पलकों में छुपाए बैठे थे
क्या हक है तुझे हमें यूं इतनी खुशी दे के रुलाने का
अरे हम तो पहले ही आंसूओ का गुबार अपने दिल में दबाए बैठे थे
गैरों से क्या गिला करना अब
हम तो तुझे अपना राजदार बनाए बैठे थे
हम तो पहले से ही चोट खाए बैठे थे ।।