...

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मनःभाव
मैं टूटा तो,
तुम भी चले गये,
फिर संभालेगा कौन ?

आज कोई नहीं अपना,
कल भी न कोई होगा,
फिर अंगुली पकड़ेगा कौन ?

मैं ख़ामोश,
सारे जहां संग तू भी ख़ामोश,
फिर हृदय की ख़ामोशी तोडे़गा कौन ?

कही सुनी बातें को,
देते रहोगे तवज़्जों,
तो हृदय से प्रीत निभायेगा कौन ?

बेज़ान तो मैं हूँ,
फिर तुम क्यों पाषाण हो रही?
सोचो ज़रा जीवन देगा कौन ?

मैं ठहरा जंगली,
तुम तो महलों की रानी,
फिर इस खाई को,
मिटाने का कदम उठायेगा कौन ?

न ख़त्म होगा इंतज़ार,
तड़पता रह जायेगा यादों बीच दिल,
तो फिर अगले जनम् में बातें करेगा कौन ?

कुछ दोष मेरा,
तो कुछ एटिट्यूड तुझमें भी,
इन दोनों को फिर मिटायेगा कौन?

ज़िंदगी की लकीरों को छोड़,
भला कोई ज़िंदा रह पाया है?
फिर इन लकीरों पर अकेला चल पायेगा कौन?

छूट जाये अगर,
ज़िंदगी की पतवार दोनों में से किसी की,
तो फिर स्वयं को माफ़ करेगा कौन?

मैं टूटा तो,
तुम भी अजनबी कह गये,
फिर संभालेगा कौन ?

#मनःश्री
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