सुन ले केशव !!!
हे अद्वितीय ! हे अनंता !
सृष्टि रचयिता तुम केशव !
जन जीवन पर घोर संकट
जीवन डोर तुम्हारे हाथ केशव !
किए जघन्य अपराध मैंने
सृष्टि पर घोर प्रहार किए केशव !
क्षमा नहीं जिनकी अपराध किए
तुमने हरदम उपकार किए केशव !
समय का कैसा चक्र चला
धरा रह गया सब कुछ केशव !
मृत्यु से भी अपनों को खो रहे
जीवित से अपने भाग रहे केशव !
आज जब छूटा हर मोह से
स्वार्थवश तुझको पुकार रहा केशव !
रुदन कर रही आत्मा मेरी
करुण पुकार सुन ले केशव! सुन ले केशव........
विनीता पुंढीर