काग़ज़ के टुकड़े
कोशिकाओं से बने जीवित व्यक्ति को
निर्जीव काग़ज़ के टुकडों ने नचाया है
देख जरा इंसान इन पैसों ने क्या-क्या खेल रचाया है।
वैसे तो तु सख्त है पर पैसे देखकर पिगल गया
कभी किसी के अरमान तो काभी किसी के रिश्ते
तु निगल गया
क्या काली कमाई का ढेर कभी तुझे जरा सा भी खला है
क्या याद हैं तुझे उनके चेहरे जिन्हें तूने इस काग़ज़ के खतिर छला है।
किसी को चोरी, तो किसी को रिश्वतखोरी करना ये...
निर्जीव काग़ज़ के टुकडों ने नचाया है
देख जरा इंसान इन पैसों ने क्या-क्या खेल रचाया है।
वैसे तो तु सख्त है पर पैसे देखकर पिगल गया
कभी किसी के अरमान तो काभी किसी के रिश्ते
तु निगल गया
क्या काली कमाई का ढेर कभी तुझे जरा सा भी खला है
क्या याद हैं तुझे उनके चेहरे जिन्हें तूने इस काग़ज़ के खतिर छला है।
किसी को चोरी, तो किसी को रिश्वतखोरी करना ये...