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भर चुका हूँ भीतर से
पिता का गुज़रना,
बारिश में टप-टप करते
घर के आँसू ...
ख़्वाबों को आईना
न दे पाने का अधूरा वादा ...
उम्मीदों की मरम्मत
के लिए पैसों की किल्लत..
कराहती,सिसकती
मजबूरियों की बढ़ती उम्र ...
सोचा,,
लोगों से कहूँ
मगर मज़ाक के डर से
मैं चुप!
दीवार से भी नहीं कहा,
कि कहीं वो ढह न जाएँ,
पेड़ों से कहूँ,
मगर वो सूख गए तो..?
फिर चुप!
मैं अपने दुख दर्द
बाॅंट न सका किसी से
कभी साझा न कर सका..
ग़म के डर से
बची-खुची खुशियां भी
भरभराकर निकलने
लगी हैं आँखों से..
.... मैं भर चुका हूँ भीतर से!!
_______✍️जर्जर
...
..
ये तबस्सुम फ़क़त दिखावा है
मैं तो इक डायरी के अंदर हूँ
___जर्जर
बारिश में टप-टप करते
घर के आँसू ...
ख़्वाबों को आईना
न दे पाने का अधूरा वादा ...
उम्मीदों की मरम्मत
के लिए पैसों की किल्लत..
कराहती,सिसकती
मजबूरियों की बढ़ती उम्र ...
सोचा,,
लोगों से कहूँ
मगर मज़ाक के डर से
मैं चुप!
दीवार से भी नहीं कहा,
कि कहीं वो ढह न जाएँ,
पेड़ों से कहूँ,
मगर वो सूख गए तो..?
फिर चुप!
मैं अपने दुख दर्द
बाॅंट न सका किसी से
कभी साझा न कर सका..
ग़म के डर से
बची-खुची खुशियां भी
भरभराकर निकलने
लगी हैं आँखों से..
.... मैं भर चुका हूँ भीतर से!!
_______✍️जर्जर
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..
ये तबस्सुम फ़क़त दिखावा है
मैं तो इक डायरी के अंदर हूँ
___जर्जर
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