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अपना-सा-एक कोना
#ख्वाबोंकासफर

मेरा अपना-सा-एक कोना, मेरा बचपन, हसना और रोना
वही होता था मेरा हर खेल और खिलौना|

मेरी वो छत, मुझे सबसे प्यारी थी,
अभी बस होता हैं उसमें ख्वाबों का सफर, इतनी यादें वहां गुज़ारी थी|

आ बसे है इन शहरी मिनारो में,
चार मंज़िला इमारत में|

ये खुदको ऊंचा बताती है,अब इसे कौन समझाऐं? मुझें तो तारों की चादर भाती हैं|

जिंदगी रूकी तो नहीं हैं बस मिलता यहां वो सुकून नही हैं|

यहां वो आज़ादी नही हैं, तेज़ हवाओं से बाते और खुले आसमान में राते नही हैं|

ज़रूरी तो हर रिश्ता होता ही है लेकिन इसमें वो अपनें-सी-बात नहीं है|

यहां मैं रहती हूं परिवार के साथ बसती हूं, इसका पास होना भी हैं खास, हां इसकी अहमियत भी मैं समझती हूं|

बस ख्वाबों में सफर आज भी उसी छत पर करती हूं, इस दिल में कही अपना-सा-एक कोना रखती हूं|

© Kanika

#nostalgia #memories #desire #writco