...

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चीखे
ज़ब भी तुम
इतिहास की.
किसी मोटी
पुस्तक को खंगालोगे
तुम्हे उसके हर पन्ने पर
मेरी ( मानवता ) चीख
सुनाई देगी

लुभावना........
हो जाता हैँ विस्तार तुम्हारे मन का ह्रदय तक
ज़ब भी एक इंद्रधनुष की छटा क्षितिजो पर. दिख जाती हैँ
या ज़ब हरी घास का वैभव हमें लुभाने लगता हैँ या फिर निर्ज़न मे बहती हुई नदी की कलकल सुनाई पड़ती हैँ