...

2 views

दर्पण
ख्वाहिश नहीं, मुझे
मशहूर होने की,"

आप मुझे "पहचानते" हो,
बस इतना ही "काफी" है।

अच्छे ने अच्छा और_
बुरे ने बुरा "जाना" मुझे,

जिसकी जितनी "जरूरत" थी
उसने उतना ही "पहचाना "मुझे!

जिन्दगी का "फलसफा" भी
कितना अजीब है,

"शामें "कटती नहीं और
-साल" गुजरते चले जा रहे हैं!_

एक अजीब सी
'दौड़' है ये जिन्दगी,_

"जीत" जाओ तो कई
अपने "पीछे छूट" जाते हैं और

_हार जाओ तो,_
_अपने ही "पीछे छोड़ "जाते हैं!_

_बैठ जाता हूँ_
_मिट्टी पे अक्सर,_

_मुझे अपनी_
_"औकात" अच्छी लगती है।_

_मैंने समंदर से_
_"सीखा "है जीने का तरीका,_

_चुपचाप से "बहना "और_
_अपनी "मौज" में रहना।_

_ऐसा नहीं कि मुझमें_
_कोई "ऐब "नहीं है,_

_पर सच कहता हूँ_
_मुझमें कोई "फरेब" नहीं है।_

_जल जाते हैं मेरे "अंदाज" से_,
_मेरे "दुश्मन",_

-एक मुद्दत से मैंने_
_न तो "मोहब्बत बदली"_
_और न ही "दोस्त बदले "हैं।_

_एक "घड़ी" खरीदकर_,
_हाथ में क्या बाँध ली,_

_"वक्त" पीछे ही_
_पड़ गया मेरे!_😓

_सोचा था घर बनाकर_
_बैठूँगा "सुकून" से,_

-पर घर की जरूरतों ने_
_"मुसाफिर" बना डाला मुझे!_

_"सुकून" की बात मत कर-
-बचपन वाला, "इतवार" अब नहीं आता!_😓😥

_जीवन की "भागदौड़" में_
_क्यूँ वक्त के साथ, "रंगत "खो जाती है ?_

-हँसती-खेलती जिन्दगी भी_
_आम हो जाती है!_😢

_एक सबेरा था_
_जब "हँसकर "उठते थे हम,_😊

-और आज कई बार, बिना मुस्कुराए_
_ही "शाम" हो जाती है!_😓

_कितने "दूर" निकल गए_
_रिश्तों को निभाते-निभाते,_😘

_खुद को "खो" दिया हमने_
_अपनों को "पाते-पाते"।_😥

_लोग कहते हैं_
_हम "मुस्कुराते "बहुत हैं,_😊

_और हम थक गए_,
_"दर्द छुपाते-छुपाते"!😥😥

_खुश हूँ और सबको_
_"खुश "रखता हूँ,_

_ *"लापरवाह" हूँ ख़ुद के लिए_*
*-मगर सबकी "परवाह" करता हूँ।_😇🙏*

*_मालूम है_*
*कोई मोल नहीं है "मेरा" फिर भी_*

*कुछ "अनमोल" लोगों से_*
*-"रिश्ते" रखता हूँ।*
© abdul qadir