...

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दर्पण
ख्वाहिश नहीं, मुझे
मशहूर होने की,"

आप मुझे "पहचानते" हो,
बस इतना ही "काफी" है।

अच्छे ने अच्छा और_
बुरे ने बुरा "जाना" मुझे,

जिसकी जितनी "जरूरत" थी
उसने उतना ही "पहचाना "मुझे!

जिन्दगी का "फलसफा" भी
कितना अजीब है,

"शामें "कटती नहीं और
-साल" गुजरते चले जा रहे हैं!_

एक अजीब सी
'दौड़' है ये जिन्दगी,_

"जीत" जाओ तो कई
अपने "पीछे छूट" जाते हैं और

_हार जाओ तो,_
_अपने ही "पीछे छोड़ "जाते हैं!_

_बैठ जाता हूँ_
_मिट्टी पे अक्सर,_

_मुझे अपनी_
_"औकात" अच्छी लगती है।_

_मैंने समंदर से_
_"सीखा "है जीने का तरीका,_

_चुपचाप से "बहना "और_
_अपनी "मौज" में रहना।_

_ऐसा नहीं कि मुझमें_
_कोई "ऐब "नहीं है,_

_पर सच कहता हूँ_
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