हम दोनों
क्या लिखूं अब,
कलम की स्याही फीकी सी है,
मन का दर्पण धुंधला गया है,
जिंदगी की धूप छांव में
मेरा सूरज भी लुका छुपी खेल रहा है!
हां सच ही तो है,
तू है भी और नहीं भी;
किसी शातिर जुआरी सी,
दुनिया की चालें सीख ली...
कलम की स्याही फीकी सी है,
मन का दर्पण धुंधला गया है,
जिंदगी की धूप छांव में
मेरा सूरज भी लुका छुपी खेल रहा है!
हां सच ही तो है,
तू है भी और नहीं भी;
किसी शातिर जुआरी सी,
दुनिया की चालें सीख ली...