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महिला दिवस
लिख रही हूँ आज कलम की जुबानी
स्त्री के जज़्बात औऱ स्त्री की कहानी

जकड़ी गई वो रिवाज़ की जंज़ीरो मे
कही चल ना सकी उसकी मनमानी

घुट-घुट कर करती रहीं जीवन व्यतीत
ना जाने कैसे चलाई सासो की रवानी

नाहक पर ज़ब उठानी चाही आवाज़
मिटानी चाही सब ने उसकी निशानी

क्यों नही समझते है कोई उसकी वफ़ा
लुटा देती है परिवार पे अपनी जवानी

जीवन रहता है उसका संघर्षो से भरा
सामना करती है उसका वो मरदानी

नज़रो से करती है वो खुद की रक्षा
बचाती है रोज़ वो इज़्ज़त खानदानी

स्त्री गर्भ से ही उत्पन्न हुए वीर यहाँ
बात उसके मन की किसीने ना जानी

कोई नहीं हरा पाया उसके सपनों को
करली पूरी वो ज़िद्द जो है उसने ठानी

अंधेरों से लड़ करती है घर वो रोशन
स्त्री होती है परिवार कि रोशनदानी

पुरुषों के भी घुटने टिक जाते हो जहाँ
स्त्री हल कर लेती है वो भी परेशानी

उसके ही कदमों के नीचे है स्वर्ग बसा
है वेद पुराणों कुरान की पवित्र वानी
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नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत-नग-पगतल में
पीयूष स्रोत बहा करो जीवन के सुंदर समतल में,,,,,

देवों की विजय, दानवों की हारों का होता युद्ध रहा,,,,
संघर्ष सदा उर अंतर में जीवित रह नित्य विरूद्ध रहा।

आंसू से भीगे आंचल पर मन का सबकुछ रखना होगा,
तुमको अपनी सि्मत रेखा से संधि पत्र लिखना होगा ।
(जयशंकर प्रसाद)

हे! स्त्री तुमसे रौशन कायनात है
केवल एक दिन नहीं,हर दिन तुम्हारा ही दिन है
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सभी प्यारी सखियों को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 😊💐💐💐💐💐💐

#महिलादिवस
© वैदेही