...

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ठोकरें भी अच्छी हैं
परख लोगों की करना भी धीरे-धीरे ही आता है
पारखी नजर का होना भी धीरे-धीरे ही हो पाता है
क्यों कहें भला हम ठोकरें को यहाँ पर बुरा
ये ठोकरें ही तो हैं जिनसे चलने का हुनर आता है।








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