मेहनत
मेहनत:- मेहनत से उठी हूं मेहनत का दर्द जानती हूं। लचीला पेड़ थी जो झेल गयी आंधियों को। मैं मग्रूर दरख़्तओं का हश्र जानती हूं। छोटे से बड़ा बनना असान नहीं होता। ज़िन्दगी में कितना ज़रूरी है सब्र करना, बहुत मुश्किल होता है चुप चाप सहन कर जाना। मेहनत बड़ी तो किस्मत भी बढ़ चली। छालों में छिपी लकीरों का हश्र जानती हूं। कुछ पाया पर अपना कुछ भी नहीं माना। सब कुछ था अपना उसके बाद भी बहा दिया अपने हाथों से। पाना था अपनी मंज़िल को करना था अपने सपनों को पूरा। क्योंकि आखिरी ठिकाना तो मेरा अपना लक्ष्य पाना था।