निशब्द
लिखने को शब्द बहुत हैं, सुनने को बातें
मन का लिखा कोई न पढ़ पाया
कोई है क्या जो दिल में झांके
हृदय की वेदना उभर नहीं सकतीं
कागज़ और साही पर
कोई खिड़की नहीं बनी जो इसमें तांके
बच ना सका भवनाओं के सागर से
कूदना ही पड़ता है गोता लगाके,
निशब्द रह गया ये जहाँ
बन ना सका कोई कबीरा
'जो इन शब्दों को बाॅंचे'
✍ranu
© All Rights Reserved
मन का लिखा कोई न पढ़ पाया
कोई है क्या जो दिल में झांके
हृदय की वेदना उभर नहीं सकतीं
कागज़ और साही पर
कोई खिड़की नहीं बनी जो इसमें तांके
बच ना सका भवनाओं के सागर से
कूदना ही पड़ता है गोता लगाके,
निशब्द रह गया ये जहाँ
बन ना सका कोई कबीरा
'जो इन शब्दों को बाॅंचे'
✍ranu
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