मेरा लिखा कौन पढ़ेगा?
मेरा लिखा कौन पढ़ेगा?
मैं धरती की बदहाली लिखता हूँ,
चाँद-तारों की बातें थोड़ा कम ही लिखता हूँ।
धरती माँ की पीड़ा को कौन सुनेगा?
मुझे कौन पढ़ेगा?
मैं सिर्फ सुहागन के सिंदूर की बात नहीं करता,
विधवा की सफेद साड़ी भी लिखता हूँ।
समाज विधवा को जीने नहीं देता,
उस विधवा के दुःख को कौन कहेगा?
मेरा लिखा कौन पढ़ेगा?
खुश हूँ, यह सबको दिख जाता है,
पर दुःख किसी से कह नहीं पाता।
सभी तो खुशियाँ ही लिखते हैं,
फिर दुःख की बात कौन करेगा?
मेरा लिखा कौन पढ़ेगा?
कुछ ने हिंदू को, कुछ ने मुस्लिम...
मैं धरती की बदहाली लिखता हूँ,
चाँद-तारों की बातें थोड़ा कम ही लिखता हूँ।
धरती माँ की पीड़ा को कौन सुनेगा?
मुझे कौन पढ़ेगा?
मैं सिर्फ सुहागन के सिंदूर की बात नहीं करता,
विधवा की सफेद साड़ी भी लिखता हूँ।
समाज विधवा को जीने नहीं देता,
उस विधवा के दुःख को कौन कहेगा?
मेरा लिखा कौन पढ़ेगा?
खुश हूँ, यह सबको दिख जाता है,
पर दुःख किसी से कह नहीं पाता।
सभी तो खुशियाँ ही लिखते हैं,
फिर दुःख की बात कौन करेगा?
मेरा लिखा कौन पढ़ेगा?
कुछ ने हिंदू को, कुछ ने मुस्लिम...