...

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भुला बैठा हूँ.....
चला था मै तेरी ओर
बस कुछ कदम राहों में और
अपने खुद का ठिकाना ही भूला बैठा हूँ,

जो दिख गयी है मुझे
एक झलक तेरी संजीदगी से
मै अपने खुद के सोने के बहाने भुला बैठा हूँ,

है आरजू अब यही
बस मिलो तुम कहीं की
अपनी खुद की अब मै पहचान भुला बैठा हूँ,

है ख्वाहिस अब यही
की बन जाओ तुम मेरी
अलावा इसके अपने सारे अरमान भुला बैठा हूँ,

हजारों की भीड़ में भी
वहाँ तेरी आहत पहचान लेता हूँ
जहाँ अब मै अपनी धड़कन भुला बैठा हूँ,

चला था मै तेरी ओर
बस कुछ कदम राहों में और
अपने खुद का ठिकाना ही भूला बैठा हूँ_!!
© दीपक