कथा अभियान की
अरे पथिक क्यों ठुकराय
मुझ में भी कभी जवानी थी ।
भर पूर माल था
घर में सुंदर नारी थी ।
चारों दिशाओं में चर्चे थे,
बड़े-बड़े मेरे खर्चे थे ।
करती थी सर के टुकड़े
वह तलवार हमारी थी ।
रख वाना अपने कदमों पर सर ,
यह पहचान हमारी थी ।
बातों का मैं बलशाली था
वचनों को निभाने वाला था ।
अरे पथिक क्यों ठुकराय मुझ में कभी जवानी थी
भरपूर माल था ,
घर में सुंदर नारी थी
घायल किया तड़पाया
उसको
बात ना मेरी मानी थी ।
जला दिए जाने कितने घर
बह मसाल हमारी थी ।
लूट डकैती धोखा देना,
चीर हरण मदिरा पीना
वे सौक हमारे थे
जाने कितनों को वे घर किया
जाने कितने...
मुझ में भी कभी जवानी थी ।
भर पूर माल था
घर में सुंदर नारी थी ।
चारों दिशाओं में चर्चे थे,
बड़े-बड़े मेरे खर्चे थे ।
करती थी सर के टुकड़े
वह तलवार हमारी थी ।
रख वाना अपने कदमों पर सर ,
यह पहचान हमारी थी ।
बातों का मैं बलशाली था
वचनों को निभाने वाला था ।
अरे पथिक क्यों ठुकराय मुझ में कभी जवानी थी
भरपूर माल था ,
घर में सुंदर नारी थी
घायल किया तड़पाया
उसको
बात ना मेरी मानी थी ।
जला दिए जाने कितने घर
बह मसाल हमारी थी ।
लूट डकैती धोखा देना,
चीर हरण मदिरा पीना
वे सौक हमारे थे
जाने कितनों को वे घर किया
जाने कितने...