...

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Soldier Saurabh
है दिल कचोट से भरा हुआ
जो ज़ख्म है फिर से हरा हुआ
कब तक यूँ लड़ेंगे खुद में ही
क्यों घर में दुश्मन खड़ा हुआ
वीरों को हम यूँ क्यों खोएं
कुछ सियासती फ़र्जी रोएं
अब हल निकले, कोहराम मचे
जड़ से हो ख़तम जो ज़हर बोए
मेरा सीना दर्द से तब जकड़े
कोई सैनिक का कॉलर पकडे
ईमान धरम कुछ बाकी नहीं
क्यों नहीं आपदा में अकड़े!
सरकार से अब है गुज़ारिश ये
हो रही खूनों की जो बारिश ये
अब हल निकले, कोहराम मचे
जड़ से हो ख़तम अब शोरिश ये
ऊम्मीद के दामन थोता हूँ
जब मैं मायूसी में खोता हूँ
मैं 'अर्चित नमन करूँ उनको
जिनके निगरानी में सोता हूँ