...

2 views

चले जाएगें
अब नहीं कहेगे कुछ भी चले जाएगे
हम सब्ज पेड़ है सुखन में चले जाएगे
जरूरत नहीं बची है किसी प्याले की
लब्ज प्यासे ही समन्दर से चले जाएगे
इसलिए भी हम कम बात करते है
लोग जज्बात समझ भी तो नहीं पाएगे
बहुत बरसे है और एक दिन में खाली हुए
हम मिट्टी कि तरह सबकुछ समाते जाएगे
सब मुझे ढूडेगे ,पर हम नजर न जाएगे
इस तरह आखों से हम ओझल हो जाएगे
फिर एक जंगल मे ,एक पेड़ रोएगा
परिन्दे आएगे रोएगे ,तसल्ली से बाध जाएगे
पहाड़ देखेगे ,परिन्दे उड़ जाएगे
फिर मेरी बात पर झरने नदियों से न लड़ पाएगे
फिर फूलेगे फूल ,खुसबूओ से गिर जाएगे,,,


© Satyam Dubey