...

5 views

धोखा
#हिंदी साहित्य दर्पण
#शीर्षक -धोखा
स्वरचित - नन्द गोपाल अग्निहोत्री
-------------------------
मृगतृष्णा के पीछे दौड़े,
कहो हाथ क्या आएगा ।
जो कभी किसी का हुआ नहीं,
वो आज तुम्हारा क्या होगा ।
मकरंद चूसते ही भँवरे,
झट फूल छोड़ उड़ जाते हैं,
ये अवसरवादी होते हैं,
अवसर का लाभ उठाते हैं ।
सीधे सच्चे इंसान यहाँ,
अक्सर शिकार बन जाते हैं ।
बहुरुपियों के चंगुल में पड़,
प्रायः लूटे ही जाते हैं ।
यह कृत्रिम युग है इस युग में,
हर कदम -कदम पर धोखा है ।
हीरे के मोल कांच बिकता,
जौहरी भी धोखा खाता है ।
© Nand Gopal Agnihotri