...

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जब लिखते...
नशा होठों का शराब से भी आगे,
जब लिखते...
तेरे होठों को नवाब-ए-शराब लिखते।

तेरी आंखों में डूबते इस कदर,
जब लिखते...
तेरी आंखों को समंदर-ए-सवाब लिखते।

तेरी जुल्फों के आगे मोर के पर भी फीके,
जब लिखते...
तेरी जुल्फों को सदा-गुलाब लिखते।

तेरे हुस्न की चमक बेहोश है करती,
जब लिखते...
तेरे हुस्न को लाज़वाब लिखते।

तेरी बातों से बदल जाता है मौसम मेरा,
जब लिखते...
तेरी बातों को इश्क की किताब लिखते।

“क्या बनाया है जनाब खुदा तुझे?
जब लिखते... तुझे नायाब, उसे आदाब लिखते।।”

© Rahul Raghav