...

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मेरी अधूरी मोहब्बत...
एक सपना ही था शायद जो ऐसे टूट गया
सब कुछ कहकर भी सब अनकहा सा रह गया
मुकम्मल होना ही नहीं था शायद मुकद्दर इसका
मेरी अधूरी मोहब्बत का वक़्त गवाह हो गया....

हर पल में ना जाने कितना संजोया
उसको नहीं पता मैं कितना हु रोया
हर लम्हा मैंने हस्ता चेहरा ही था सजाया
मुकम्मल होना ही नहीं था शायद मुकद्दर इसका मेरी अधूरी मोहब्बत...