...

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नादान इंसान
इंसान कोई भी बहाना करके लड़ता आया है
सदियों से जाने क्यों यह सिलसिला चलता आया है।
कभी धर्म,कभी जाति , कहीं रंग की लड़ाई
इतना समय बीत गया ,इस प्राणी को अकल न आई
न जाने कब समझेगा ये नादान इंसान
नहीं होती जाति ,धर्म ,रंग से तुम्हारी पहचान।
इंसान होने का पहला धर्म तो निभाओ
" इंसानियत " की लौ को अपने अंदर जगाओ।
दूसरों के दुखों में अपनी खुशियां पाते हो
इंसान कहलाने का हक कहां से लाते हो ?
मत बहाओ धर्म ,जाति के नाम पे खून
मर के भी नहीं मिलेगा तुम्हें कहीं सुकून
आने वाली पीढ़ियों को क्या पाठ पढ़ाओगे
खुद ही बेवकूफ ,नासमझ हो ,उन्हें क्या समझाओगे ??
करो रिश्तों का मान ,रखो आंखों में शर्म
वैसा ही फल मिलेगा जैसे करोगे कर्म।
अब भी बदल लो खुद को ,होश लो संभाल
रहो प्यार , इज्ज़त से ,दुनिया हो खुशहाल ।।
रुचि कपूर
© Rhyme with Ruchi