...

41 views

उलझने ज़िन्दगी की ......
ये ज़िन्दगी आखिर समझ क्यों नही आती....

खिलौनों से खेल के बड़े होते
बड़े होकर खुद खिलौना बन जाते....
अनजाने में खुद ही बर्बाद किया खुद को
जब टूटे सपने तो कारण समझ नही पाते ...
नादानी थी तो ठोकर से घर को सिर पे उठाया......
आज तूफान उठा है फिर भी होठो पर मुस्कुराहट ही दिखाया.....
दिल दिमाग का गणित समझ ही नही पाता..
जो है नही हमारा वही दिल को क्यों भाता...
खुश थी कल भी शायद खुश हूं आज भी
पर इस शायद का माजरा समझ नही आता.
हैरान होती हूँ कि मैं वह क्यों थी
खुश होती हूँ कि अब वहां नही हूँ...
ज़िन्दगी के साथ मैं भी थोड़ा उलझ गयी
क्योंकि मैं वहां तो नही पर यहां भी नही हूँ...
खैर अब इस गणित को मैं समझना भी नही चाहती....
जो जैसा है सब ठीक है
सुलझाने के चक्कर मे अब औऱ उलझना नही चाहती....
तो चलो ज़िन्दगी का एक नया दौर ज़िया जाए ....
जिनको कद्र नही हमारी उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाए ... .
क्या पता कौन सी सांस आखिरी हो तो
चलो खुशी में ,गम में , थोड़ा ही सही पर मुस्कुरा लिया जाए .....
क्योंकि लोग आते जाते रहेंगे पर मुस्कान रहनी चाहिए....
गुमनाम से रिश्तों से बने इस शहर में
हमारी पहचान रहनी चाहिए ......
............✍️☺️✍️..........
तो हर हाल में मुस्कुराइए क्योंकि ये ज़िन्दगी समझ किसी को नही आती है तो कोशिश भी न करे इसे समझने की ....🙏🙏
© @nji