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मज़ा तो तब हो
मज़ा तो तब हो....
जब बात तुमसे हो नहीं तो तन्हाई-ए-सुनापन सज़ा हो।।
जब खामोशी और लफ़्ज़ दोनों नशे की तरह चढ़े,
तो तुमसे उलझी हर सिलवट-ए-दिल की,
रूह के खत पर लिखी मोहब्बत-ए-रज़ा हो।।
मज़ा तो तब हो जब तुम ही तुम इश्क़ के सिहरण की तीर-ए-कज़ा हो।।


© KALAMKIDIWANI