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देह से औरत मगर ज़िम्मेदारी से पुरुष
देह से औरत
मगर ज़िम्मेदारी से पुरुष
उसके हिस्से की धूप भी सहती है
सुबह फटाफट किचन निपटा कर
खटखटा सीढियां उतरती है
बच्चों को लंच में ताज़ा सब्ज़ी देकर
अपने लिए अक्सर रात की सब्ज़ी या आचार ही पैक कर लेती है
उसकी भी पीठ दुखती है ऑफिस में बैठे बैठे
मन भी दुखता है घर में ताने उलाहने
और ऑफिस में बॉस की डाँट सुनते
पर क्या करे....
फँसी है ऐसे चक्रव्यूह में
न रहते बनता है न निकलते
अब उसके कमाए रुपयों की एक खास...