कब तू किताब उठाएगा
#अनपढ़पन्ने
हूँ बैठी न जाने कब से,
देखी न है दुनिया जब से,
चह मेरी भी है उसमे समाने की
उस अनजान से एक मुलाकात पाने की
पर कैसे करू पुरी उस चाह को मेरी
हूँ पडी इन धूल की दिवारों में
हूँ मजबूर थोडी सी मैं...
हूँ बैठी न जाने कब से,
देखी न है दुनिया जब से,
चह मेरी भी है उसमे समाने की
उस अनजान से एक मुलाकात पाने की
पर कैसे करू पुरी उस चाह को मेरी
हूँ पडी इन धूल की दिवारों में
हूँ मजबूर थोडी सी मैं...