जाति धर्म और भेदभाव
अमीरी गरीबी का खेल हैं निराला ,
ऊपर से जाति और रंग ने भी अपना खेल, खेल डाला,
लोग तो बटे हुए थे पहले ही,
अब और क्या रहा हैं इस समाज में बाटने को,
यहा तो जानवरो को तक नही छोडा
गाय कब हिन्दू की हो गई और बकरा कब मुस्लमान का पता ही ना चला,
ये दुरी मिटते नही मिट रही,
कब आये समझ लोगो को ये छोटी सी बात,
मुस्किल नही है ये दुरी मिटाना लेकिन अब आसान भी नही लगता,
प्यार बाटने वालो से ज्यादा नफरत बाटने...
ऊपर से जाति और रंग ने भी अपना खेल, खेल डाला,
लोग तो बटे हुए थे पहले ही,
अब और क्या रहा हैं इस समाज में बाटने को,
यहा तो जानवरो को तक नही छोडा
गाय कब हिन्दू की हो गई और बकरा कब मुस्लमान का पता ही ना चला,
ये दुरी मिटते नही मिट रही,
कब आये समझ लोगो को ये छोटी सी बात,
मुस्किल नही है ये दुरी मिटाना लेकिन अब आसान भी नही लगता,
प्यार बाटने वालो से ज्यादा नफरत बाटने...