...

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"सौंदर्य"
वो भी क्या सौंदर्य है,
जिसे बार बार बालों को संवार कर लाना पड़ता है।

प्रत्यक्ष जो दिखता नहीं ,
रूप शीशे में झांककर निहारना पड़ता है।

सौंदर्य जो उत्तम नहीं,
फिर भी अधिकतम बनाए रखना पड़ता है;
रूप एक अभिसाप है,जो मन को सुक्ष्म बनाता है,
कही भी बाहर जाओ, अपना रूप ही मन में आता है।

रूपवान का रूप जैसे कस्तूरी हिरण के नाभि की,
मन को भटका भटका कर मार देती है मृग को।

ऐसा सौंदर्य जिसके खोने का डर रहता है,
खोना जिसका निश्चित है,
फिर भी रूपवान सोया रहता है !
क्षणिकता का पीछा कर अमरता को नकार रहा,
जैसे मिनट मिनट बचाकर घंटे गवा रहा।

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© Kuldeep_Saharan