...

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वो अपनी सोच में कुछ ऐसे डूब गया है
वो अपनी सोच में कुछ ऐसे डूब गया है
बैठे बैठे ही वो अलग दुनियां में पहुंच गया है

रात के अंधेरे से मानो वो डरता कम है
अपने ही ख्यालों के भवर में वो हर दिन डूबा सा है

वो अपनी सोच में कुछ ऐसे डूब गया है
तकलीफ़ में मोनो जैसे वो जी राहा सा होता है

बातें कम करते हुए न जाने वो फिर से कहा खो सा जाता है
दर्द छुपाने के हुनर ने ही तो मुझे आज सब के सामने नवाजा है

वो अपनी सोच में कुछ ऐसे डूब गया है
मानो आख़री मुकाम तक आया है

लेकिन यहां से उसे तो ख़ाली हाथ ही लौटना है
निराशा से दूर होते ही उसे जो एक नई किरण खोजनी है

हाथों की लकीरें मेरे अब भी खिलाफ़ है
संघर्ष से मुझे आख़िरी बार यह लढ़ाई लढ़नी ही है

वो अपनी सोच में कुछ ऐसे डूबा है
मानों उसने हम सबको इस सोच पर चलने से कहीं बार रोका है