...

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जिसका मन निश्छल होगा...
न उलझनों-बींधी,टहनियां होंगी न वैर वैमनस्य के
बंधे बिखरे तार होंगे!!
निश्छल मन है उस अनंत का घर,
यहाँ पर स्वयं ईश्वर के वास होंगे!!

समय द्वंद उठें जो तेरे अंतर्मन में एक-एक कर
शांत सब, निराश होंगे!!
उजले मन में ,न हरगिज 'सागर' कलैह- क्लेश,
ये कलुषित रास...