ना जाने क्यों
ना जाने क्यों हर जगह उसका ही खयाल आता है,
चाहे रात का अंधेरा हो या दिन का उजाला,
चांद का नूर हो या तारो की चमक,
बारिश की बूंदे हो या शाम की हवा,
सिर्फ उसे जानने का खयाल आता है।
फिर लगता है....
जान गया तो बिखर ना जाऊं,
और फिर बिखर कर मुझे समहलना नहीं आता है,
फिर भी.. ना जाने क्यूं हर जगह उसका ही खयाल आता है।
© Ad.turk
चाहे रात का अंधेरा हो या दिन का उजाला,
चांद का नूर हो या तारो की चमक,
बारिश की बूंदे हो या शाम की हवा,
सिर्फ उसे जानने का खयाल आता है।
फिर लगता है....
जान गया तो बिखर ना जाऊं,
और फिर बिखर कर मुझे समहलना नहीं आता है,
फिर भी.. ना जाने क्यूं हर जगह उसका ही खयाल आता है।
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