...

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#तेरे दर पर पड़े रहें#
तेरे दर पे पड़े रहें, शहर में दुश्मन कितने हो गए
तेरी जुस्तजू तेरी आरजू सब फसाने हो गए।
ज़ख्म ज़ख्मों से पूछते हैं
दिल_ दिल है या खाली मकान हो गए।
मैं होश में आऊं कि कुछ और पिला दो यारो
कफन मुर्दों से उतारा की नंगे लोग हो गए।
मेरे घर में ही जल गया मेरा सब कुछ
मुझ को ठगने के लिए लोग कितने सयाने हो गए।
जिनके साथ बैठ कर जिंदगी पीते थे हम
गम यहीं ठहरा कि जब से वो अनजाने हो गए।।

© मनोज कुमार