...

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रंजिशे अपनी
वक्त की भी है दास्तान अपनी ,
हुए मेहमान वहा , जो थी मकान अपनी ।

मोहलत और किस्तों के फरेब में ,
उलझ गई जिंदगी खामखा अपनी ।

ना रंजिश ,ना सोहबत न रिश्ता खुदा से ,
आसमान से खाली लौटी हर दुआ अपनी ।

बनेंगे इस कदर काफिर सोचा न था ,
लब पे नाम आए, तो काटले जुबा अपनी ।।


© mukesh_syahi