...

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हाँ आज़ाद होना चाहता हूं .....


मै, ये मन और ये तन साथ है
तू सांस सी धड़कन मे कैद है
सिमट कर ख़ुद मे खुद को आज़ाद करना चहता हूं
हाँ कैदी हूं मै आज़ाद होना चाहता हूं




क्षुब्ध मन के भाव को मै तोड़ता
सफ़र पुराना नया जिस्म का मोल सा
सांस का सौदा सांस से करता जिस्म को कोसता
अनुभवी रूह के जाने से मन मसोटता
आज़ाद रूह के खातिर खाख जिस्म होता
मुहब्बत की हद उस वक़्त तौलता
दिखाई देगा उस आलम मे, आकाश मे धुआं हर सू
फोड़ती खोपड़ी संग खवाइश-ए़ -जिस्म रूह मे विलय जब होगा
"****
बैकारारी को क़रार आएगा अब...