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प्रेम मिट गया इस धरती से
प्रेम मिट गया इस धरती से,
बोझ उठाए कहीं हम भी निकल पड़े,
सुकून कहाँ दिखे इस जीवन में,
जब प्रेम मिट गया इस धरती से।
आँखे दिखा रही है ओझल,
संसार जो उसने देख लिया है,
फीका पड़ी दुनिया भी अब,
जब प्रेम मिट गया इस धरती से।
राहे कितने भटक रहे लोग,
जीवन में खुशियां पाने के लिए,
अधूरा पड़ा अब मन की शांति,
मिले कहाँ चलें ढूढ़ के ले आए,
जगह-जगह सब सुना-सुना,
क्योंकि प्रेम मिट गया इस धरती से।
© Srishti Morya
बोझ उठाए कहीं हम भी निकल पड़े,
सुकून कहाँ दिखे इस जीवन में,
जब प्रेम मिट गया इस धरती से।
आँखे दिखा रही है ओझल,
संसार जो उसने देख लिया है,
फीका पड़ी दुनिया भी अब,
जब प्रेम मिट गया इस धरती से।
राहे कितने भटक रहे लोग,
जीवन में खुशियां पाने के लिए,
अधूरा पड़ा अब मन की शांति,
मिले कहाँ चलें ढूढ़ के ले आए,
जगह-जगह सब सुना-सुना,
क्योंकि प्रेम मिट गया इस धरती से।
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