...

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मजबूरी...
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
नाबालिग बच्चें करते मजदूरी हैं।

बिन चप्पल न देखते वो छांव-धूप हैं,
झूठ नहीं मजबूरी हैं,
होनी चाहिए जिन हाथों में किताब हैं,
वो छोटे बच्चें करते देखें मजदूरी हैं।

चाय कि टपरी हों या होता कोई बड़ा होटल...