मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
दर - दर भटक मृग,
ढूंढ रहा अपनी ही कस्तूरी है,
नहीं यहां कोई कविता पुरी,
कहानी अभी सबकी अधूरी है,
झूठ नहीं मजबूरी है,...
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
दर - दर भटक मृग,
ढूंढ रहा अपनी ही कस्तूरी है,
नहीं यहां कोई कविता पुरी,
कहानी अभी सबकी अधूरी है,
झूठ नहीं मजबूरी है,...