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मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
दर - दर भटक मृग,
ढूंढ रहा अपनी ही कस्तूरी है,
नहीं यहां कोई कविता पुरी,
कहानी अभी सबकी अधूरी है,
झूठ नहीं मजबूरी है,
बुराई दिखे सारे जगत में,
स्वयं में झांकना अब जरूरी है,
प्रेम में नहीं अर्पित मात्र मन,
तन के व्यापार को भी मंजूरी है,
तुम जानो क्या - क्या जरूरी है,
बालक ने खोए अपने आत्मविश्वास,
युवा मे ना बची जीने की आस,
वृद्धों के तोड़े सब ने विश्वास है,
जाने ये कैसी मजबूरी है,
या मनुष्य मात्र की मगरूरी है,
अंजली








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