...

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मैं सागर सा लहराऊँ,
तुम शांत बदरिया सी मैं सागर सा लहराऊँ,
तेरी झील सी आंखों की थाह कभी ना पाऊँ,

शब्द हैं तेरे गहरे गहराई नापते ही थक जाऊँ,
धवल चांदनी रातों में मैं तो अम्बर में खो जाऊँ,

तुम ब्रह्ममुहुर्त की मंद वायु तन शीतलता देती,
तन हो शांत कोई न भ्रान्ति मन प्रसन्न कर देती,

मेरे मन का वेग आंधी का तेज शांति न लेने दे,
मन बुद्धि को भी कभी कभी कार्य न करने दे,

तुम शांत बदरिया सी मैं सागर सा लहराऊँ,
तेरी झील सी आंखों की थाह कभी ना पाऊँ,









© प्रकाश