...

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बलात्कार...
बलात्कार,
सिर्फ़ जिस्म का नही होता है..
ये होता है रूह का..
ज़ख्म सिर्फ़ जिस्म में ही नही होता..
होता है आत्मा पर..
धब्बा समाज पर लगता है..
घृणा पौरुषता से होती है..
निर्लज पुरूष होता है..
वैसे बलात्कार करने वाला मानव होता ही नही,
वो तो पिशाच होता है..
अपराधी एक नारी के साथ साथ
समाज का.. होता है..
जिस का बलात्कार होता है
वो तो निसहाय होती है..
बलात्कारी अतिक्रमण करता है
एक महिला के स्वाभिमान का स्वतंत्रता का..
इच्छा के विरुद्ध बल पूर्वक शारीरिक संबंध बना
पशुता का परिचय देता है बलात्कारी..
ये समाज का कर्त्तव्य होना चाहिए
की बलात्कारी को दण्ड
भुक्तिभोगी द्वारा ही दिया जाना चाहिए..
वरना नष्ट हो जायेगी मानवता..
पशुता का राज होगा..
उठ जायेगा पुरुष समाज से विश्वास
हर पुरूष संदेह की निगाह से देखा जायेगा..
न्याय शीघ्र होना चाहिए.. जख्म भरने के पहले..

© दी कु पा