मुफलिसी के दिन
ठंढ अब इस तरह सितम कर रही ,
चिथडो में भी दो बदन को ढाप रही ,
कुछ तो जिस्मानी ताप बढ रही ,
सर्दी के आग़ोश में दोस्ती सर चढ रही ,
क़रीने से सजा है वाडरोब किसी का ,
कोई ज़रूरत के लिए भी...
चिथडो में भी दो बदन को ढाप रही ,
कुछ तो जिस्मानी ताप बढ रही ,
सर्दी के आग़ोश में दोस्ती सर चढ रही ,
क़रीने से सजा है वाडरोब किसी का ,
कोई ज़रूरत के लिए भी...