...

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प्रेम
मैंने कभी प्रेम में,
उन्हें गुलाब नहीं दिया,
ना ही गुलमोहर,
और ना ही कभी उनके बालों में,
सरसों के फ़ूल लगाएं।
हां लेकिन कभी कभी,
फूलों के बगीचे में,
और गुलमोहर के छांव में,
उनके साथ बैठा ज़रूर ।
क्यूंकि मुझे पता था,
प्रेम कभी भी,
टूटना, बिछड़ना, अलगाव
बर्दाश नहीं करता हैं।

- अखण्ड प्रताप 'हितैषी