...

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मैं पतंग
पतला-सा, वेश-स्वरूप मेरा
उसमें दो कांप मेरी ढाल बनी,
इस रूप को लेकर
लो मैं पतंग बन गयी।
कभी सरल, तो कभी रंगीन हूँ मैं,
कभी अकेले, तो कभी अनेक संग हूँ मैं…
सरल, आधुनिक, कई रूप मेरे
चांद- तारा, सितारा जैसे,
है बहुत से उपनाम मेरे।
बांधकर मुझमें तंग
जोड़ मुझे एक डोर से,
ले मज़े एक छोर से
हवा के दिशा का रुख-मोड़ देख,
उछलकर छोड़े मुझे आसमान में ।
लहराते, बलखाते, हिलते–डुलते, गुलाटी और गोते खाते
उडूं आसमां में पंछी संग।
कभी ढील दे, तो कभी तान दे,
कभी किसी के साथ पेच लड़े,
मेरी डोर अपने हाथ लेकर
इंसान मुझे अपने अनुसार उड़ाए।
कभी किसी पतंगों की जंग में जीत जाऊं मैं,
तो कभी कहीं हार जाऊं,
हो अलग उस मांझे से
हवा मुझे अपने वश करे।
लहराते, चलते उसके साथ,
कहीं किसी तारों, पेड़ों में उलझ जाऊं मैं,
मुझ कटी पतंग को देख
कई मेरे पीछे भागे।
मिलूं कभी सुरक्षित,
तो कभी थोड़ी सी चोट संग
लगाकर टेप मुझे
मेरे घावों को मरहम - पट्टी कर ,
फिर बांध गांठ अपनी डोर से कोई
ले फिरकी अपने हस्त।
लेकर मेरी बागडोर,
चलूँ मैं लड़ने एक नई जंग !
यह मेरी कहानी , मैं हूं पतंग!




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