सबक़.. शायद कुछ नहीं!
इस धरा की सुंदरता जो कि दर्शनीय हैं पर जब अपनी हल्की सी ताक़त का एहसास मात्र कराती है तो हर बंदा मजबूर ओ बेबस, ज़मी दोज़ नज़र आता है
हर इंसानी और हर विज्ञानी या फिर तकनीकी काबिलियत द्वारा विकसित और संचालित ये पल दो पल का ढांचा पानी तक नहीं मांग पाता है
फिर भी न जानें हम सब किस गुमान में इतनी अकड़ के साथ जी रहें हैं जैसे यहां रिश्ते और इंसानियत को छोड़ कर सब कुछ हमारी पकड़ और वश में
नज़र आता है
इसे अफसाना कहे या हक़ीक़त पर अमल हमारा बेवकूफाना और बचकाना ही
नज़र आता है।
कितने ही ऐसे सीख लेने वाले बेशुमार मंज़र इंसानी दिलों दिमाग़ में ज़िंदा पड़े हैं
चाहे वो गुजरात का भुज हो, सुनामी से पीड़ित श्रीलंका या इंडोनेशिया, ज़लज़ले से काँपा पड़ोसी नेपाल हो, पिछले साल जो भयावह स्थिति तुर्की में दिखी या फिर पूरे आलमे इंसानियत को झकझोर देने वाला कोविड- 19,
पर हमने तो मानो ना संभलने न सुलझने ना समझने की कसमें खाई हो
परतें हटेंगीं और बातें अगर बढ़ेंगी तो बहोत दूर तलक जायेंगी…
चांद का सफ़र हो के ग्रहों नक्षत्रों की खोज, हवाई यात्रा की बुलंदी हो के बुलेट ट्रेन की रफ़्तार,
टाइटैनिक...
हर इंसानी और हर विज्ञानी या फिर तकनीकी काबिलियत द्वारा विकसित और संचालित ये पल दो पल का ढांचा पानी तक नहीं मांग पाता है
फिर भी न जानें हम सब किस गुमान में इतनी अकड़ के साथ जी रहें हैं जैसे यहां रिश्ते और इंसानियत को छोड़ कर सब कुछ हमारी पकड़ और वश में
नज़र आता है
इसे अफसाना कहे या हक़ीक़त पर अमल हमारा बेवकूफाना और बचकाना ही
नज़र आता है।
कितने ही ऐसे सीख लेने वाले बेशुमार मंज़र इंसानी दिलों दिमाग़ में ज़िंदा पड़े हैं
चाहे वो गुजरात का भुज हो, सुनामी से पीड़ित श्रीलंका या इंडोनेशिया, ज़लज़ले से काँपा पड़ोसी नेपाल हो, पिछले साल जो भयावह स्थिति तुर्की में दिखी या फिर पूरे आलमे इंसानियत को झकझोर देने वाला कोविड- 19,
पर हमने तो मानो ना संभलने न सुलझने ना समझने की कसमें खाई हो
परतें हटेंगीं और बातें अगर बढ़ेंगी तो बहोत दूर तलक जायेंगी…
चांद का सफ़र हो के ग्रहों नक्षत्रों की खोज, हवाई यात्रा की बुलंदी हो के बुलेट ट्रेन की रफ़्तार,
टाइटैनिक...