...

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ये बेटियाँ
खुशनसीब है वो आँगन जहाँ चहकती हैं बेटियाँ
जीवन के सहरा में फूलों सी महकती हैं बेटियाँ
बेटों से होते हैं घर आँगन रोशन
तो स्नेह से घर को भरती हैं बेटियाँ
बहन के रुप में भाई की कलाई का धागा और माथे का तिलक बनकर
बेटी के रूप में पिता के शीश की पगड़ी बनकर
पत्नी के रूप में घर की लक्ष्मी अन्नपूर्णा बनकर
माँ के रुप ममता प्रेम की धारा बनकर
हर रुप में जीवन को जीने योग्य बनाती हैं बेटियाँ
और बदले में चाहती हैं तो बस जीवन जीने का हक
ना गर्भ में यूँ मारो तुम बेटियाँ
ना हवस की आग में यूँ जलाओं तुम बेटियाँ



© Garg sahiba