...

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तेरी याद आती है
तेरी याद आती है

जब कहीं भीतर कोई रंग झड़ जाता है
कोई धुआँ भर आता है
कोई तार विखर जाता है
तेरी याद आती है

अपनी हीं छाया से जब मन दूर भागता है
एक खंडहर के सन्नाटे में
चक्कर काटता है
तेरी याद आती है

जब कोई पाँव रौंद जाता है एक हरी नर्म दूब को
और एक चीख फिर वहीं लौट आती है
तेरी याद आती है

अंधेरा पास जब आता है
भीतर सन्नाटा कुछ और गहराता है
कोई लहर जब थिर जाती है
कोई लौ अचानक बुझ जाती है
तेरी याद आती है

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तेरा असर रंग लाता है

तेरे बगैर भी
तेरा असर रंग लाता है

कोई साथ था जो साया कभी अब रूह में घुल जाता है
तेरे बगैर भी
तेरा असर रंग लाता है

कोई बात नहीं
कि हर सदा लौट आती है हर सिम्त से तू हो न हो फ़िजाओं में
तेरा असर रंग लाता है

ये जो एक नूर है मेरे दिल के निहाँखाने में
कभी साजों में कभी नज्मों में ढल जाता है
ये किसकी फ़ितरत है कि मेरे पैकर में
तेरा असर रंग लाता है

सहमी सी कोई हवा जब होती है
और सिले होठ सा पत्ता पत्ता
उस ठहरे से बारिश के मौसम में
तेरा असर रंग लाता है

तेरे बगैर भी
तेरा असर रंग लाता है








© daya shankar Sharan