सफर
हम चलेंगे उस सफर पर फिर कभी,
जो हमने दौर-ए-वफाओं में देख रखा है।
ये हम छोटे शहर वालों के इश्क के सपने,
कुछ एक टूट भी जाये तो क्या रखा है।
उलझन-ए-मोहब्बत कितना सुनाएं, अहल-ऐ-महफ़िल को,
घर के बङे बेटे हैं ,...
जो हमने दौर-ए-वफाओं में देख रखा है।
ये हम छोटे शहर वालों के इश्क के सपने,
कुछ एक टूट भी जाये तो क्या रखा है।
उलझन-ए-मोहब्बत कितना सुनाएं, अहल-ऐ-महफ़िल को,
घर के बङे बेटे हैं ,...