...

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" जब आ खड़ी हुई मृत्यु सिरहाने "
जब आ खड़ी हुई मृत्यु सिरहाने ;
तब लगे महाशय उससे कतराने ,
बैठे हैं करने खुशामद और समझाने ;
मांगें कुछ दिन की मोहलत फिर मौत के नज़राने !

जीवन जो व्यस्त था स्वयं में अब तक ;
बिताना संग सबके चाहूँ कुछ क्षण सुहाने ,
कुछ उनकी सुनूं...कुछ अपनी सुनाऊँ ;
चाहूँ सबको मैं थोड़ा गले लगाने !

कर दूँ क्षमा हर उस जन...